मेरी कवितायेँ
Saturday, September 4, 2010
जिद्दी
१. जिद्द उस मुकाम तक मैंने देखी तेरी,
मेरा घर जल गया और नज़र भी न गयी तेरी ...
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२. मैं जो डूबा तो किनारे पे खड़े लोग हँस रहे थे,
अफ़सोस कि हंसने वालों में मेरा मुकद्दर भी शामिल था ...
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